Friday, January 8, 2010

कपडे उतारती नारी

आज कल नारी पुरुष को निशाना बनती है वह नारी जो अपने को नारी पंगती मै अग्रणीय बताती है वह कहती है आदमी बल्त्कारी हो गया है आदमी ने नारी को असुरक्षित कर दिया है वह सडक पर गली में या कही भी अकेली नहीं निकल सकती और समाज व् कानून ने उसे बेचारी मानते हुए आदमी को दोसी करार दे दिया क्या आदमी इसका जिमेदार है मै मानता हु नहीं\ ताली एक हाथ से नहीं बजती \ जरा एक पहलू ये देखे आज समाज में अपने को पड़ी लिखी आधुनिक नारी क्या अपना पूरा शरीर डक कर चलती है नारी ने सकुल में कम कपडे पहने फिर कालजे में छोटे कपडे पहने जब गली या पार्टी में गई तो भी छोटे ही कपडे पहने उतने छोटे जितने वह पहन सकती है उनसे पूछे क्यों नहीं पहनती है पुरे कपडे \वह कहती है सुंदर लगने के लिए छोट कपडे पहनती हु \ जरा नारी बताये क्या कम कपड़ो में नारी सुंदर लगाती है\ मै मानता हु नहीं , गलत जवाब है \ जो नारी छोटे कपडे पहनती वह आकर्सन के लिए पहनती है सुंदर लगाने के लिए नहीं \दुल्हन को सुंदर कपडे पहनाकर बनाया जाता है उतार कर नहीं\ कपडे उतार कर आप जिस के लिए आकर्षित कर रही है अगर आदमी आकर्षित हो जाता है तो वह दोसी क्यों क्या नारी दोसी नहीं है
टिपण्णी के इंतजार में

4 comments:

  1. बाप-रे-बाप इतना सच कह दिया है , लग रहा है कि अभि नयें हो ब्लोगिंग में , लिखा तो आपने बहुत सही है । आखिर कुछ करने को आमंत्रण कौन देता है ,और जब कुछ हो जाता है तो अपमान, प्रताडना की शिकायत आने लगती है । बढिया लिखते है आप , आगे भी ऐसे रचनाओं का इन्तजार रहेगा ।

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  2. कृपया पहले व्याकरण की गलतियाँ सुधार लें ताकि इतने महत्वपूर्ण और विषय पर गलतफ़हमी की गुंजाइश खत्म हो सके ।
    धन्यवाद ।

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  3. कृपया पहले व्याकरण की गलतियाँ सुधार लें ताकि इतने महत्वपूर्ण और विषय पर गलतफ़हमी की गुंजाइश खत्म हो सके ।
    धन्यवाद ।

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  4. आपने बेबाक होकर लिखा है और आगे भी ऐसे ही लिखती रहें ..सुधारने की कोशिश करें ..सब अपने आप ठीक हो जाएगा ...मगर लिखना मत छोडें ..आशा है आप मेरा मंतव्य समझ रही होंगी

    अजय कुमार झा

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