Monday, November 23, 2009
नारी समानता नही चाहिए
आज विश्व में एक आवाज़ आ रही है कि नारी समानता होनी चाहिए सहमत नही हु आप सहमत हो सकते है समाज में नर व् नारी दोनों को रहना है दो सामान ताकत आराम से एक साथ नही रह सकती दोनों टकरती रहेगी जब तक एक हार न मानले यही हमारे समाज में होगा/ क्योकि जगत का नियम है कि रजा एक ही होता है जब कई राजा होगे तो अराजकता फ़ेलेगी यही हल नारी समानता आते ही ही होगा समाज समाज न रह कर एक आदमी का समाज रह जाएगा हार आदमी का अपनी सच के अनुसार समाज हो गा/ समानता आते ही कामवासना बेडेगी व् हिंसा होगी विश्व में नर काम प्रधान होता है जब नारी भी बराबर हो जाएगी तो काम अपने चरम पर पहुच जाएगा तलाक होगे व् कुवारी लडकियों को बचे होगे / जिन बच्चो के बिखरे परिवार होते है उनमे समाज के परती कोई मोह नही होता उनकी वर्ती हिंसात्मक होती है तो क्या आप विकरत समाज चाहो गे संतान जो भविष्य होती है अपने भविष्य को बिगड़ना चाहोगे क्या आप अपने समाज में हिंसा चाहते हो समाज में उपर लिखी बुराई ही नही सारी बुराई आएगी क्या आप चाहते है बुरा समाज / तो अब बताये क्या नारी समानता होनी चाहिए/ टिपणी के इंतजार में /
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बराबर कैसे हो सकते हैं, जब नारी हैं महान इसका मतलब नर हैं बेईमान अगर विश्वास ना हो तो देख लो हमारे MAHASHAKTI मित्रों ने लिखी है पोस्ट
ReplyDelete“ नारी ” तू हैं बड़ी महान
http://mahashaktigroup.bharatuday.in/2009/11/blog-post_18.html
अगर पु रुष अपने काम पर काबू नहीं पा सकता तो इसकी सज़ा नारी को क्यों?
ReplyDeleteआप मुझे पुरूष के अहम् लिए व्यक्ति प्रतीत हो रहे है, आपको सायद कुछ खतरा महसूस होने लगा लगा है नारी से, आप कहते है आप कुछ भी करे आप स्वतंत्र है पर नारी आज भी चार दिवारी में कैद ही रहे आप किस दुनिया जी रहे है जनाब, आपने नारी समानता को किस रूप में देखा है क्या सोचा है? ये तो आप ही कह सकते है.
ReplyDeleteआप कहते है की पुरूष उनपर तरह -तरह के अत्याचार करते रहे परन्तु वो हमेशा की तरह सिर्फ़ आंसू बहाकर चुप हो जाए। और किसी से कह भी न सके, हम नारी को शक्ति की तरह पूजते है कन्या-ओ को देवी मानते है और बिडम्बना देखिये की वोही पर हर दिन कन्याये बलात्कार की शिकार होती है बहुए जलाई जाती है , ये भी तो हमारे समाज का एक बदनुमा हिस्सा है।
किसी के भी स्वतंत्रता से अभिप्राय ये नही की हम अपनी जिम्मेदारी भूल जाय, नारी समानता को इस रूप में देखा जन चाहिये की उसे उसके अधिकार मिले वो अपने उपर होने वाले अन्याय से लड़ सके।
आपने लिखा है की समानता आते ही काम वाशना बढेगी ये कैसा तर्क है। इसका अर्थ तो ये है की पुरूष सिर्फ़ काम वासना लिए जिबित है , अगर ऐसा ही होता तो पुरूष विवाह न करता।
जरूरत इस बात की है की समानता का अभिप्राय किससे है इस बात को समझा जाय।
बिल्कुल सही कहा आपने । जो सदियों से चलती आयी है और वह प्रकृति द्वारा बनायी गयी हो , वह कभी बदल ही नहीं सकती । आपसे पूर्णतया सहमत हूँ ।
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