Wednesday, July 1, 2009

धर्म/ अधर्म

विश्व में धर्म व् जाति कितना घिनोना है इसकी कल्पना भी नही की जा सकती और यह घिनोना पन सदियों से इन्सान के साथ आ रहा इस ju है इन दो बातो ने आज हमे इन्सान नही राक्ससबना दिया / धर्म कहता है बुरे काम मत करो किसी से इर्ष्या मत करो हम सब एक भगवन के पुत्र है , हम सब भाई भाई है

जरा सोच कर बताये / आप किसी भी धर्म के हो/ क्या आपके धर्म का किसी धर्म से भाई चारा है क्या आपके धर्म का कही कोई दुसरे धर्म से कोई तनाव नही चल रहा क्या आपके आपके पडोस में दुसरे धर्म वालो अपने धर्म की तरह पटतीहै क्या आपका मन दुश्रे धर्म वाले को अपना मानता है और जब टोटल एक धर्मं अवलंबी होते है तबउनकी बातो में भाई चारा होता है क्या ? जरा खुले मन से अपने धर्म को मानते हुए सोचिए मेरे हिसाब से उतर दुसरे के प्रति एक तनाव जरुर होगा खुले मन से जिसे आप नही मानते /

धर्म को घिनोना क्यो कहता हु/ धर्म पहले था या इन्सान ? इसका सभी समझदारयही उतर देगे की इन्सान पहले, धर्म बाद में है इंसानों से ही धर्म बना है इस लिए इन्सान पहले है परन्तु आज धर्म के नाम पर कितना खून खराबा हो रहा है जिससे समाज में और ख़ुद ने तनाव हो क्या वः हमारा या समाज का हित है क्या हम शान्ति से जी पायेगे जब समाज ने तनाव होता या आप पर तनाव रहता है वहभी बदले का तो बताइए आप उन्नति की सोच सकते हो नही न इरसया में में सभी गर्त में ही गिरते है /

जीवन का एक ही लक्ष है आनन्द / क्या कोई इसे प्राप्त सकेगा ,नही ना जब सब कुछ होहे हुए आप को आनन्द नही मिला तो आपने जीवन में कुछ पत्राप्त नही किया / आप पहले इन्सान थे बाद मेधर्म था आपने इन्सनित्यत को त्याग कर धर्म को अपनाया है क्या वह वस्तु या सोच अपनानी चाहिए जिससे आप का और समाज का दोनों का बुरा हो रहा हो /


धर्म किसी एक की अमानत नही है अगर आप आस्था रखते है तो भगवन सभी का है परन्तु जब एक लडका या लडकी शादी करते है तो धर्म के ठेकेदार पुरी ताकत से अडंगा लगते है आए दिन आप ख़बर सुनते हो उन्हें क्या परेशानी होती है सब को अपनी जिन्दगी जीने का हक़ है जितने भी नाम से जुड़े धर्म हैजैसे हिंदू ,मुस्लिम ,क्रिचन आदि आदि उन्हें त्याग देना चाहिए जितने भी नाम से जुड़े धर्म है यह धर्म नही अधर्म है मेरा यह मन्ना है की यह संसार का ना भला किया है ना करेगे

निवेदन - तिप्न्नी जरुर लिखे ,आप अपना इ-मेल पता लिख सकते है जिससे आप से सीधा जुदा जा सकता है

4 comments:

  1. डाक्टर साहिब,किसी इन्सान के कृ्त्य घिनोने हो सकते हैं न कि धर्म. धर्म किसी भी रूप में कभी गलत नहीं हो सकता.....धर्म तो वो संकल्पना है,जो एक पशुवत मनुष्य को पहले इन्सान और फिर भगवान बनाने का सामर्थ्य रखती है!

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  2. पर कभी बना नहीं पाती...
    इसीलिए शायद इंसान इतना घिनौना बना रहता है...

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