Saturday, June 6, 2009
मूर्ति पूजा क्यो ?
में मूर्ति पूजा के बारे में जानना चाहता हु क्योकि इस विषय पर मेरा कोए विश्वास नही हे /आप सभी से अनुराध हे कि इस विषय के बारे में जो भी ज्ञान या तर्क रखते हो देने का कास्ट करे इस बारे में विस्तार से बताये आप किसी भी धर्म से सम्भन्ध रखते हो विश्व के किसी भी कोने से हो / मैयह समझता हु कि येही हमे ज्ञान से दूर ले जा रहा हे /धर्म से विमुख होने का कारण ऐसी पूजा हे इसी कारन हम सिख्सित होते हुए भी पाप कर्म कि तरफ बढ रहे हे पुरी दुनिया मै धर्म के नाम पर करोडो रूपये या पुरी दुनिया में तो अरबो अरबो खर्च होते हे मगर हम फिरभी हम नरक में जो रहे हेंयहाँ नरक से मेरा अर्थ समाज के विरूद्व कार्य से हें /इस सारा तंतरके बीच गलती बहुत हें मगर में आप से केवल मूर्ति पूजा पर ही बात करना चाहता हु इसको समाज में पुरी तरह लागु करना चाहिए या हटा देना चाहिय में आपसे आसा करुगा कि आप बिना किसी डर के अपने दिल के विचार रखे किसी के सुने या पडे हुए नही होने चाहिए पर्ति किरिय जरूर दे अपना इ मेल पता देगे तो आप से सीधा सम्पर्क केरे गे
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देवताके मूर्ति की प्रतिस्थापना करते समय धूप, अगरबत्ती, प्रसाद, मंत्रोच्चार इस तरह के अनेक विधि / कर्मकांड किये जाते हैं |
ReplyDeleteमेरी यह धारणा है की हमारी पंचज्ञानेंद्रिये तथा मन और बुद्धि इश्वरचरण में पूरी तरह से समर्पित हो केवल तभी हम इन सब के परे इश्वरी संवेदनोंका स्वीकार कर पायेंगे |
मूर्ती, पुष्प = दृष्टी, स्पर्श
अगरबत्ती, धूप, प्रसादकी सुगंध = सूंघना, नाक
प्रसाद = जिव्हा
मंत्रोच्चार, आरती = कान
इसप्रकार पंचज्ञानेंद्रिये देवता पर केन्द्रित हो यह सरल सीधी रचना |